Sunday, July 25, 2010

city of gold 2010 hindi movie review


'city of gold' इस movie के लिए मैं एक ही लाइन लिखूंगा की 'this movie is the best'. लेकिन ये movie उनके लिए है जो कुछ अच्छा और real देखना चाहते है. ये उनके लिए नही है जो आम bollywood movie देखना चाहते है. उनके समझ मे ये movie आएगी ही नही.
महेश मांजरेकर ऐसी movie भी बना सकते है मुझे नही मालूम था . महेश 15 सालो मे काफ़ी मांझ गये है. महेश का ये प्रयास अच्छा है.उन्हो ने अतीत से अच्छा परिचय कराया है. सभी actors ने अच्छा काम किया है. शायद ये director का ही कमाल है की उसने कश्मीरा शाह जैसी actor से अच्छा काम ले लिया है. क्योकि वो तो आईटम सॉंग के लिए जानी जाती है. मुझे सबसे ज़्यादा बहन का काम अच्छा लगा.
निम्न वर्ग का सही चित्रण है. जब हालत कुछ अच्छे रहते है तब कुछ और बात रहती है और जब हालत बहुत ज़्यादा खराब होते है तो कुछ और बात हो जाती है. जैसे बहन का किसी से अफेयर होता है तो वोह गर्भवती हो जाती है,तो घर मे काफ़ी हंगामा हो जाता है और हालत बिगड़ ने पे वही बहन अपना जिस्म बेच के पैसा लाती है तो वो रख लिया जाता है.
director ने छोटी छोटी बात पे ध्यान दिया है. जैसे आखरी scene मे मोहन मामा से सिगरेट मानता है तो मामा कहता है .की एक ही है चलो एक से ही काम चला लेते है.director का इशारा मामी की तरफ होता है. क्योकि मामा से मामी को कोई औलाद नही हो रही होती है तो मामी मोहन के पास जाती है औलाद के लिए.
इस तरह की movie के लिए शब्र की ज़रूरत होती है फिल्म जैसे जैसे आगे बदती है वैसे वैसे फिल्म मे intrest पैदा होता है.movie end तक कसी हुई है. मैं इस movie को 10/10 point दूँगा.
keep it up mahesh .
लगे रहो महेश भाई.......

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